Osho : ओशो को अमेरिका से क्यों निकाला गया | ओशो की मौत क्यों आज तक भी एक राज है

 ओशो को अमेरिका से क्यों निकाला गया : ओशो जिन के दुनिया में करोड़ों अनुयाई हैं, ओशो जिंदगी जिंदगी विवादों से घिरी रही और उनकी मौत भी एक राज ही बन कर रह गई, आइए जानते हैं मध्यप्रदेश में जन्मे चंद्रमोहन कैसे बन गए ओशो और क्यों उनकी मौत भी आज तक एक राज बनी हुई है। 

ओशो (Osho) आज भी दुनिया में एक बहुत बड़ा नाम हैं, मगर बहुत कम ही लोग जानते हैं की इनकी शुरुआत कहां से हुई। 

Osho

1971 में 6 अनुयायियों के साथ मिलकर इन्होंने शुरुआत की 1972 में  इनके अनुयायियों की संख्या बढ़कर 3800 हो गई थी, 1974 मैं रजनीश गुरु उर्फ ओशो ने पुणे में अपना आश्रम बनाया,1979 ओशो के अनुयायियों की संख्या बढ़कर 1 लाख तक हो चुकी थी, जैसे-जैसे ओशो के अनुयाई बढ़ते गए पूरी दुनिया में ओशो की लोकप्रिय भी बढ़ती चली गई। 

साल 1981 के दौरान ओशो अमेरिका (America) चले गए, और अमेरिका के ओरेगॉन में उन्होंने अपने आश्रम की स्थापना की, यह आश्रम 65000 एकड़ में फैला हुआ था, पर ओशो का अमेरिका जाना बेहद विवादों भरा रहा था, उनके आश्रम राजनीशपुरम पर एक रेस्टोरेंट के खाने में जहर मिलाने का आरोपी लगे थे, इसके अलावा वहां के स्थानीय निवासियों के साथ हिंसक झड़प एक आम बात हो गई थी। 

इसके बाद साल 1985 में ओशो भारत लौट आए और भारत में उन्होंने पुणे के गोरेगांव स्थित अपने आश्रम में ही रहना शुरू किया, भारत आने के बाद उसके कई अनुयायियों ने उनका साथ भी छोड़ दिया था और उनके करीबियों के साथ उनके कई विवाद भी सामने आए। 

इसके बाद उनकी तबीयत भी बिगड़ती चली गई और आखिरकार 19 जनवरी 1990 को उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी मौत भी एक राज बन कर रह गई। 

ओशो पर किताब Who Killed Osho लिखने वाले अभय वैद्य कहते हैं कि 19 जनवरी 1990 को  आश्रम से डॉक्टर गोकुल को फोन आया और उनको कहा गया कि आपका लेटर हेड और इमरजेंसी किट लेकर तुरंत आश्रम आइए। 

डॉक्टर गोकुल गोकाणी ने अपने हलफनामे में लिखा कि वहां मैं करीब 2:00 बजे पहुंचा, और ओशो के शिष्य ने उन्हें बताया कि उसे अपनी देह त्याग कर रहे हैं डॉक्टर साहब आप उन्हें बचा लीजिए लेकिन डॉक्टर गोकुल गोकाणी को अंदर नहीं जाने दिया, कई घंटों तक आश्रम में टहलने के बाद उन्हें ओशो की मौत की जानकारी दी गई, और कहा गया कि death certificate जारी कर दीजिए, डॉक्टर अपने हलफनामे में यह भी बताते हैं कि ओशो के शिष्यों ने उन्हें मौत की वजह दिल का दौरा लिखने के लिए दबाव बनाया था। 

ओशो के आश्रम में किसी संन्यासी की मृत्यु को किसी उत्सव की तरह मनाने का रिवाज था, मगर जब ओशो की मृत्यु हुई तो मृत्यु की घोषणा करने के 1 घंटे बाद ही ओशो का दाह संस्कार कर दिया गया, विवादों के बीच रहने वाले ओशो की मृत्यु के बाद भी उनकी विरासत पर काफी विवाद हुआ, लेकिन उसकी मौत एक राज बन कर रह गई।

यदि आप तो कोई सवाल है तो कमेंट करके जरूर बताएं और इसी तरह की जानकारियों के लिए हमारे पेज से जुड़े रहे।

Post a Comment

0 Comments